गुमला जिले के चैनपुर थाना क्षेत्र में कथित पुलिस हिरासत में मारपीट और मौत के एक गंभीर मामले में झारखंड हाई कोर्ट ने कड़ा रुख अपनाते हुए त्वरित कार्रवाई के निर्देश दिए। अदालत की सख्त टिप्पणियों के बाद चैनपुर थाना प्रभारी कृष्ण कुमार को निलंबित कर दिया गया, जबकि तीन दारोगा– पुअनि दिनेश कुमार, नंदकिशोर महतो और निर्मल राय को लाइन हाजिर किया गया। यह कार्रवाई एसपी हारिस बिन जमां ने अदालत को आश्वस्त करने के बाद की, जिसमें उन्होंने माना कि मामले में गंभीर गलती हुई है।
हाई कोर्ट की फटकार और पुलिस की त्वरित कार्रवाई
यह पूरा मामला 1 दिसंबर 2025 को सामने आया जब कयूम चौधरी नामक व्यक्ति को चैनपुर पुलिस ने बिना किसी प्राथमिकी या औपचारिक शिकायत के हिरासत में लिया और कथित रूप से बेरहमी से पिटाई की। कयूम के अस्पताल में भर्ती होने के बाद उनकी पत्नी नबीजा बीबी ने झारखंड हाई कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें थाना प्रभारी पर अवैध हिरासत, मारपीट और उनकी गिरफ्तारी की मांग की गई।
गुरुवार को इस मामले की सुनवाई के दौरान एसपी ने अदालत में पेश होकर पुलिस की कार्रवाई, घटनाक्रम और शुरुआती जांच के निष्कर्षों की जानकारी दी। अदालत ने SP को पूरे मामले का रिकॉर्ड, हिरासत दिवस की CCTV फुटेज और जांच रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया था।
सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस राजेश शंकर की खंडपीठ ने सख्त टिप्पणी की कि “कानून के राज में यदि इस तरह की घटनाएँ होंगी, तो यह बेहद चिंताजनक संकेत है।” अदालत ने इसे गंभीर मानवाधिकार उल्लंघन के रूप में माना और त्वरित व निष्पक्ष जांच की आवश्यकता बताई।
जांच में खुलासा – बिना अपराध के उठाकर ले गई थी पुलिस
जांच रिपोर्ट ने स्पष्ट कर दिया कि चैनपुर पुलिस जमगाई निवासी जमरूद्दीन खान की गिरफ्तारी के प्रयास में उनके दामाद कयूम चौधरी को ही पूछताछ के नाम पर उठा लाई, जबकि उनके खिलाफ कोई भी संज्ञेय अपराध दर्ज नहीं था।
चौंकाने वाली बात यह रही कि कयूम को केवल अपने ससुर से फोन पर बात करने के संदेह में हिरासत में लिया गया था। अदालत ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि “यदि कोई किसी से फोन पर बात कर ले, तो क्या पुलिस उसे उठाकर बेरहमी से मार सकती है?” अदालत ने इसे अमानवीय, गैरकानूनी और पुलिस शक्ति के दुरुपयोग का मामला माना।
हिरासत में मारपीट की वजह से कयूम को गंभीर चोटें आईं और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा। जांच में पाया गया कि थाना प्रभारी द्वारा की गई कार्रवाई न्यायसंगत नहीं थी और यह पुलिस प्रक्रिया का खुला उल्लंघन था।
अदालत का निष्कर्ष
अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है और जल्द ही विस्तृत आदेश जारी करेगी। यह मामला अब व्यापक पुलिस जवाबदेही, मानवाधिकार और न्यायिक निगरानी का एक महत्वपूर्ण उदाहरण बन गया है।
झारखंड हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया है कि कानून के राज में हिरासत में हिंसा और अवैध कार्रवाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी, और जिम्मेदार अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई जारी रहेगी।