झारखंड में ओबीसी छात्रों की लंबित छात्रवृत्ति को लेकर स्थिति गंभीर होती जा रही है। लगभग 11 लाख विद्यार्थी पिछले कई महीनों से छात्रवृत्ति के इंतजार में हैं, जबकि छात्र संगठन लगातार विरोध जता रहे हैं। राज्य के कल्याण विभाग पर विपक्ष के आरोपों के चलते दबाव बढ़ गया है, और विभाग खुद को तकनीकी व वित्तीय नियमों की जटिलताओं में फंसा पा रहा है।
जानकारी के अनुसार, इस साल प्री-मैट्रिक ओबीसी छात्रों के लिए केंद्र से केवल 4 करोड़ रुपये ही प्राप्त हुए थे, लेकिन तकनीकी प्रावधानों के चलते यह राशि भी वापस केंद्र सरकार को लौटने की नौबत आ गई है। जब तक केंद्र का हिस्सा राज्य को नहीं मिलता, वित्त विभाग राज्य मद से भुगतान नहीं कर सकता। इसी वजह से छात्रवृत्ति वितरण का पूरा सिस्टम रुक गया है।
क्यों अटका भुगतान और राज्य क्या करेगी?
विधानसभा परिसर में मीडिया से बातचीत के दौरान आदिवासी कल्याण मंत्री चमरा लिंडा ने स्पष्ट कहा कि छात्रवृत्ति भुगतान की सबसे बड़ी बाधा केंद्र–राज्य फंड शेयरिंग सिस्टम है। उन्होंने बताया: कक्षा 1 से 8 तक की छात्रवृत्ति राज्य सरकार वहन करती है, इसलिए उसका 70% भुगतान पूरा कर दिया गया है। परंतु कक्षा 9 से आगे जहां केंद्र की हिस्सेदारी जरूरी है, वहां भुगतान अटका हुआ है। बजट उपलब्ध होने के बावजूद, वित्त विभाग केंद्र की हिस्सेदारी आए बिना फाइल को आगे नहीं बढ़ा सकता।
मंत्री ने केंद्र की नई प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि पहले राज्य मांग भेजता था और केंद्र राशि देता था, लेकिन वर्तमान व्यवस्था में कई तकनीकी जटिलताएँ हैं, जिसके कारण पहले से मिली 3-4 करोड़ की राशि भी वापस जाने का खतरा है।
मंत्री चमरा लिंडा ने घोषणा की कि सेशन समाप्त होते ही वे दिल्ली जाएंगे और केंद्र सरकार के साथ बैठकर छात्रवृत्ति संकट का समाधान निकालेंगे। उन्होंने कहा कि समस्या स्पष्ट होने और केंद्र का इरादा साफ होने पर ही राज्य आगे बढ़ पाएगा।