झारखंड में बालू घाटों की नीलामी पर लगी रोक जल्द ही हट सकती है। राज्य के मंत्री योगेंद्र प्रसाद ने विधानसभा में बताया कि बालू घाटों को फिर से शुरू करने का फैसला पेसा कानून लागू होने के तुरंत बाद लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार बालू घाटों के संचालन के लिए माइंस डेवलपर ऑपरेटर (एमडीओ) मॉडल अपना रही है और इससे राज्य को किसी तरह का राजस्व नुकसान नहीं हो रहा है। अभी राज्य के 374 बालू घाटों से ग्रामसभा द्वारा आम लोगों को 100 रुपए प्रति सीएफटी की दर से बालू उपलब्ध कराया जा रहा है। मंत्री योगेंद्र प्रसाद यह जानकारी भाजपा विधायक डॉ. कुशवाहा शशि भूषण द्वारा पूछे गए सवाल का जवाब देते हुए दे रहे थे।
उन्होंने स्पष्ट किया कि बालू घाटों की नीलामी रोकने का मुख्य कारण पेसा कानून का लागू न होना है। झारखंड हाई कोर्ट ने इस मामले में राज्य सरकार को कड़े निर्देश दिए हैं। मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान ने सरकार से कहा है कि पेसा कब लागू किया जाएगा, इसकी निश्चित तारीख बताई जाए। सरकार का कहना है कि पेसा लागू होते ही बालू घाटों की नीलामी और संचालन से संबंधित सभी निर्णय पारदर्शी तरीके से किए जाएंगे।
इस बीच, विपक्ष ने बालू संचालन की मौजूदा व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। भाजपा विधायक नवीन जायसवाल ने दावा किया है कि राज्य में कहीं भी आम लोगों को 100 रुपए प्रति सीएफटी की दर से बालू नहीं मिल रहा है। उनका कहना है कि यह दावा पूरी तरह गलत है और ज़मीनी हकीकत कुछ और है। उन्होंने सैंड माइनिंग रुल्स-2025 पर भी आपत्ति जताई और कहा कि इन नियमों के तहत राज्य का कोई भी सामान्य व्यक्ति नीलामी में शामिल नहीं हो सकता, जिससे बाहरी राज्यों—जैसे दिल्ली और मुंबई—के लोग फिर से नीलामी में हावी हो जाएंगे।
सरकार का कहना है कि पेसा लागू होने के बाद स्थिति स्पष्ट हो जाएगी और नीलामी तथा संचालन की प्रक्रिया नई प्रणाली के तहत व्यवस्थित रूप से शुरू की जाएगी। फिलहाल राज्य सरकार अदालत के निर्देशों का इंतजार कर रही है, जिसके बाद बालू घाटों पर लगी रोक हटाने और नीलामी की प्रक्रिया शुरू करने का रास्ता पूरी तरह साफ हो जाएगा।