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झारखंड की बेटी ने छोटी उम्र में किया बड़ा कमाल, 17 साल की उम्र में बनीं ‘गोल्डन गर्ल’

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झारखंड की बेटी ने छोटी उम्र में किया बड़ा कमाल, 17 साल की उम्र में बनीं ‘गोल्डन गर्ल’

झारखंड के युवा लगातार खेल जगत में राज्य का नाम आगे बढ़ा रहे हैं.ऐसे ही झारखंड की एक बेटी ने सूबे का नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रौशन किया है.ये हैं आशाकिरण बारला, इन्होंने अपनी महज 17 साल की उम्र में झारखंड को 11 नेशनल और 2 इंटरनेशनल गोल्ड मेडल दिलाई है. इन गोल्ड मेडल्स की वजह से इन्हें ‘गोल्डन गर्ल’ भी कहा जाता है.

आशा की उपलब्धियां
कहा जाता है ‘पूत के पांव पालने में ही नज़र आ जाते हैं’ उसी तरह आशा की ये प्रतिभा भी उसकी छठी कक्षा से देखने को मिल गई थी. 2017 में आशाकिरण ने विशाखापट्टनम में आयोजित अंडर-14 प्रतियोगिता में गोल्ड हासिल किया. राष्ट्रीय स्तर पर यह उनका पहला गोल्ड था. बीते वर्ष कुवैत में आयोजित चौथी एशियन यूथ एथलेटिक्स चैंपियनशिप में आशाकिरण बारला ने भारत के लिए स्वर्ण पदक हासिल किया था. आशा किरण ने 800 मीटर के फाइनल में 2:06.79 सेकेंड के साथ एशियन यूथ एथलेटिक्स चैंपियनशिप में नया रिकॉर्ड बनाया.इस तरह के कई उपलब्धियां आशा ने हासिल की हैं.

पीटी ऊषा को मानती हैं अपना आदर्श
आशाकिरण पीटी ऊषा को अपना आदर्श मानती हैं. आशा कहती हैं, “जिस तरह पीटी ऊषा ने सफलता पाई है, मैं भी 2024 ओलंपिक में सफलता हासिल करना चाहती हूं.” आशा भविष्य में भी झारखंड की ही सेवा में लगना चाहती हैं. कहती हैं- मैं यहीं रहते हुए झारखंड के लिए नौकरी करना चाहती हूं.”

संघर्षों से भरा जीवन

बीबीसी हिंदी की रिपोर्ट के अनुसार, आशा की आर्थिक स्थिति बेहद लचर है. उनका जीवन संघर्षों से भरा है. आशा गुमला शहर से 70 किलोमीटर दूर पहाड़ों की तलहटी में बसे नवाडिह गांव की रहने वाली हैं. आशा के गांव में किसी तरह की कोई बुनियादी सुविधा भी अबतक नहीं पहुंची है.आशा के पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे,उनकी मां जीवन यापन के लिए मेहनत मजदूरी करती हैं.लॉकडाउन से पहले आशा रांची के खेलगांव में अपनी प्रैक्टिस करती थीं. लॉकडाउन लगते ही खेलगांव में अभ्यास बंद होने के कारण आशाकिरण को अपने गांव वापस जाना पड़ा. लेकिन यहां खान पान की कमी से आशाकिरण कमज़ोर हो गईं और अभ्यास प्रभावित हो गया. तब कोच आशु भाटिया ने आशाकिरण को राशन मुहैया कराया.

आशाकिरण अभी बोकारो ज़िले के ‘बोकारो थर्मल’ टाउन में स्थित ‘भाटिया एथलेटिक्स एकेडमी’ के हॉस्टल में रह कर प्रैक्टिस करती हैं. जिसके सचिव आशाकिरण के कोच आशु भाटिया हैं. आशाकिरण अपनी सफलता का श्रेय अपनी टीचर सिस्टर दिव्या जोजो और वर्तमान कोच आशु भाटिया को देती हैं.

सरकार को इन युवा खिलाड़ियों की हर संभव मदद करनी चाहिए. इन्हें सुविधाएं मिलेंगी तब ही ये राज्य और देश का नाम विश्व पटल पर लिख पाएंगे

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