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संथाल परगना की वन भूमि पर नई खदान और क्रशर पर लगी रोक, डीएफओ ने एनओसी देने से किया इंकार

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संथाल परगना की वन भूमि पर नई खदान और क्रशर पर लगी रोक, डीएफओ ने एनओसी देने से किया इंकार

दुमका डीएफओ ने संथाल परगना के दामिन-ए-कोह इलाके में नई खदान और क्रशर के लिए एनओसी देने से मना कर दिया है. उस क्षेत्र से संबंधित जितने भी आवेदन आए थे उन्हे रद्द कर दिया. डीएफओ अभिरूप सिन्हा का कहना है-दुमका का काठीकुंड व गोपीकांदर प्रखंड दामिन-ए-कोह क्षेत्र के गैरमजरूआ जमीन पर है। यह इलाका वन भूमि माना गया है। वहां से जितने भी आवेदन आए हैं, उनको रद्द किया गया है “

क्या है दामिन-ए-कोह

भागलपुर से राजमहल पहाड़ियों के वनाच्छादित क्षेत्र को दामिन-ए-कोह कहा जाता है। दामिन-ए-कोह फारसी शब्द है, यानी पहाड़ियों का क्षेत्र। ब्रिटिश सरकार ने संथाल समुदाय को बसाने के लिए यह क्षेत्र संरक्षित किया था।

1894 वन अधिनियम

ब्रिटिश सरकार व्दारा संथाल के वन संरक्षण के लिए 1894 में एक एक्ट बनाया गया. इसके तहत कहा गया है कि- दामिन-ए-कोह क्षेत्र की गैरमजरूआ जमीन यानी वेस्टलैंड भी वन भूमि है। इस जमीन से 250 मी. की दूरी के बाद ही खदान या क्रशर को एनओसी दिया जा सकता है।

डीएफओ अभिरूप सिन्हा ने 1894 वन अधिनियम का हवाला देते हुए संथाल के दामिन-ए-कोह क्षेत्र के नोटिफाइड फॉरेस्ट भूमि पर खदान व क्रशर का एनओसी देने से इनकार कर दिया है।

दामिन-ए-कोह इलाके में खनन नहीं किया जा सकता है  पर यहां पहले से सैकड़ों खदानें चल रही हैं। ऐसे में बड़ा सवाल यह उठता है कि पूर्व अधिकारियों ने दामिन-ए-कोह क्षेत्र के नोटिफाइड फॉरेस्ट इलाकों में क्रशर या खदान संचालन की अनुमति कैसे दे दी ? पूर्व के डीएफओ ने इस एक्ट को प्रभावी क्यों नहीं माना। दुमका, साहिबगंज, पाकुड़ और गोड्डा में पहले से नोटिफाइड फॉरेस्ट में खदानें और क्रशर धड़ल्ले से चल रहे हैं। क्या अब उसके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी?

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