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Friday, May 10, 2024
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ये है देश की इकलौती ट्रेन जिसमें यात्रा करना है बिल्कुल फ्री, आखिर क्या है राज़, जानें

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ये देश की एकमात्र ट्रेन है जिसमें ट्रैवल करने के लिए कोई पैसे खर्च नहीं करने पड़ते हैं. जी हां ये बिल्कुल संभव है, इस रुट में एक ऐसी ट्रेन चलती है जिसमें यात्रा करना बिल्कुल मुफ्त है. इस ट्रेन में यात्रा करने वाले यात्रियों को कोई किराया भी नहीं देना पड़ता है. यहां तक की इस ट्रेन में कोई टीटीई भी नहीं है. जी बिज़नेस की रिपोर्ट के मुताबिक भाखड़ा-नंगल ट्रेन ,वो ट्रेन है जिसमें लोग फ्री में ट्रैवल करते हैं. और करीब 75 वर्षों से लोग फ्री में यात्रा कर रहे हैं.

क्या है खास
इस ट्रेन से मुख्यता विद्यार्थी और सैलानी ट्रैवल करते हैं .भाखड़ा- नंगल बांध दुनियाभर में काफी चर्चित है. ये बांध सबसे ऊंचे स्ट्रेट ग्रैविटी डैम के तौर पर मशहूर है. इसे देखने के लिए दूर-दूर से सैलानी आते हैं. जो भी सैलानी भाखड़ा- नंगल बांध देखने जाते हैं, वे इस ट्रेन की मुफ्त यात्रा का लुत्‍फ उठाते हैं. बता दें कि भागड़ा-नांगल बांध को बनाते समय भी रेलवे के ज़रिए काफी मदद ली गई थी. इस बांध का निर्माण कार्य 1948 में शुरू किया गया था. उस समय इस ट्रेन के जरिए मज़दूरों-मशीनों को ले जाने का काम किया जाता था. 1963 में इस बांध को औपचारिक तौर पर खोल दिया गया, तब से तमाम सैलानी इस ट्रेन के सफर का मजा ले रहे हैं.

इस रुट पर चलती है ये ट्रेन
ये खास ट्रेन भारत के उत्तर में चलती है. इस ट्रेन को भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड द्वारा मैनेज किया जाता है. इसे पंजाब और हिमाचल प्रदेश की सीमा पर भाखड़ा और नंगल के बीच चलाया जाता है. ये ट्रेन सतलज नदी से होकर गुजरती है और शिवालिक पहाड़‍ियों से होते हुए 13 किलोमीटर की दूरी को तय करती है. जिस ट्रैक से ट्रेन गुजरती है, उस पर तीन टनल हैं और कई स्‍टेशन हैं.हर रोज इस ट्रेन से करीब 800 लोग सफर करते हैं.

1948 से सेवा दी रही है ट्रेन
इस ट्रेन को साल 1948 में शुरू किया गया था. इसकी खासियत है कि इसके कोच लकड़ी के बने हुए हैं और इसमें कोई टीटीई नहीं रहता है. पहले ये ट्रेन स्टीम इंजन के साथ चलती थी, लेकिन बाद में इसे डीजल इंजन से चलाया जाने लगा. शुरुआत में इस ट्रेन में 10 कोच होते थे, लेकिन वर्तमान में इसमें सिर्फ 3 बोगियां हैं.

साल 2011 में BBMB ने रेलवे में हो रहे वित्तीय घाटे को देखते हुए इस मुफ्त सेवा को रोकने का फैसला किया था, लेकिन बाद में ये तय किया गया कि इस ट्रेन आय का स्रोत न माना जाए, बल्कि विरासत और परंपरा के रूप में देखा जाए.

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